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आप सभी पाठको को हमारा प्यार भरा नमस्कार ǃ हमे आप के बहूत से प्यारे – प्यारे ई-मेल मिले जिनमें हमें आपका ढेर सारा प्यार मिला। कुछ ई-मेल में अगली कहानी का इतने लम्बे समय से पोस्ट ना होने की शिकायत भी थी। बहुत लम्बे समय से कोई कहानी पोस्ट न कर पाने के लिए हम आप सभी से छमा चाहेगें। आप सभी को हमारी पिछली कथा ʺ एक कथा बाबा काल भैरव जी की … ʺ बहुत पसंद आयी। इसी कड़ी़ को जोड़ते हुए हम फिर से आप के लिए एक और उत्तराखण्ड की प्रसिद्ध , प्राचीन और सच्ची प्रेम कथा ले के आये है।
ये कथा अपने आप में बहूत ही अदभुत कथा है। ये कथा अधिकतर उत्तराखण्ड के कुमाँऊनी और गढ़वाली लोक गीतो के माध्यम से गायी जाने वाली गीतो में सुन्ने को मिलती है । आप सभी ने भारतीय इतिहास की बहूत सी प्रसिद्ध प्रेम कथायें सुनी होगीं। हीर-रांझा, सोनी-महिवाल और लैला-मजनू जैसी अनेक अमर प्रेम कथा आप ने सुनी होगीं और ना जाने कितनी ही अमर प्रेम कहानीयां इस दुनिया मे हूई है, जो हम लोगो तक आज भी नहीं पहूच पायी है। तो चलिए आप का समय नष्ट न करते हुए हम अपनी कथा पर आते है।
गनेश जी विनती कुनुं, हाथ जोड़ी बेरा । विघ्न दूर करि दिया, तुमरि मेहरा ।।
उत्तराखण्ड का इतिहास वैसे तो बहूत प्राचीन है। पर देखा जाय तो उत्तराखण्ड के इतिहास मे हमें कत्यूरी राजाओं के राज्य से ही सही जानकारी मिलती है। एैसा माना जाता है कि कत्तयूरी राजाओं की नीव राजा वासुदेव द्वारा रखी गयी। लगभगा 6 वी से 7 वी शताब्दी के बीच ही कत्तयूरी वंश का उदय राजा वासुदेव जी के राज्य स्थापित करने से शुरू हुआ। उत्तराखण्ड के इतिहास मे हर जगहा कत्यूरी राजा की प्रसंशा ही देखने को मिलती है। कत्यूरी वंश के राजा अपनी प्रजा का हर तरह से ध्यान रखते थे। विशेष तौर पर अपने न्याय प्रिय होने के लिए जाने जाते है। यहा तक भी कहा जाता है कि कुछ कत्यूरी राजाओं के पास दैवीय शक्तिया भी हुआ करती थी। और प्रजा भी अपने राजा को भगवान की तरह पूजा करती थी। हम भी आपको आज एक प्रसिद्ध कत्यूरी राजा मालूशाही और उन की प्रेमिका राजूला की लोक कथा सुनाने जा रहे है।
राजा मालुसाई कौं मैं, शुरू बरणन किया । जो कुछ गलतिया हली, माफ करि दिया ।।
कत्यूरी राजा प्रीतम दुलाशाही बैराठ राज्य में अपनी रानी धर्मा देवी के साथ राज-काज करते थे। जिनकी राजधानी चौखुटिया ( अलमोड़ा के पास ) थी। राज्य खुशहाल और प्रजा अपने राजा से प्रशन्न थी। पर राजा दुलाशाही का कोई उत्तराधीकारी ना होने के कारण राजा दुलाशाही और रानी धर्मा देवी दोनो चिंतित रहते थे। शंतान प्राप्ती के लिए एक बार कत्यूरी राजा प्रीतम दुलाशाही अपनी पत्नी धर्मा देवी के साथ हरिद्वार की यात्रा पर निकले।
हरिद्वार महिमा कैं, अपारा बतानी । जय भगवान भागी, दयाल है जानी ।।
प्राचीन काल से ही हरीदवार स्थान अपनी सबसे पवित्र और देवी देवताओं के निवास स्थल के रुप में माना जाता है। वैसे कुछ लोक गीतो में इस बात पर भ्रम है की राजा अपनी संतान प्राप्ती की इच्छा ले के सायद हरीदवार की जगहा उत्रराखण्ड के बागेश्वर जिला के मंदिर बाबा बागनाथ गये हो क्योकी बाबा बागनाथ का मंदिर भी बागेश्वर जिले मे गंगा़-गोमती और गंगा-सरयू नदी के पावन संगम पर स्थित है। पर कुछ कारणो से ये ही मानना सही होगा की वो हरीदवार ही गये होंगे जो हम आपको आगे बतायेगें।
यात्रा के दौरान राजा दालूशाही और रानी धर्मा देवी ने बहूत कष्ट सहे और अपनी सेना की छोटी सी टुकड़ी के साथ पैदल ही यात्रा पूरी की। जब राजा दालूशाही और रानी धर्मा देवी हरीदवार पहुचे तो पहले स्नान के लिए गंगा नदी के किनारे पहुचे और कुछ देर वहा विश्राम किया। राजा और रानी गंगा नदी के किनारे बड़े से पत्थर पर बैठ के हरिदावर के पास गंगा नदीं के चारो तरफ फैली प्रकृती की खुबसूरत छटा को देखने का आनंद ले रहे थे। और गंगा मां को हाथ जोड़ के अभिवादन कर रहे थे।
धन धन प्रभु तुम, धन धन माया। कतु कू जनम लिया, कतू मरी पया। तभी राजा दालूशही ने थोड़ी दूर एक पत्थर पर एक सुन्दर सी महीला को बैठा देखा। राजा दालूशाही उस महिला को देखते ही रह गये। वो महिला बहूत सुन्दर और बहूत सारे अनमोल आभूष्णो सजी हुई थी।
राजा ने रानी धर्मा देवी को उस महिला की ओर इशारा करते हुए प्रश्न किया लगता है वो देवी भी किसी राज घराने या किसी संमपन्न परिवार से है। जब रानी ने खूबसूरत और कीमती गहनो से सजी हुई स्त्री को देखा तो देखती ही रहगयी। और उनसे मिलने के लिए राजा दुलाशाही से आग्रह करने लगी।
विदेशी मुलुक आय, सजी धजी बेरा। गांउली सिंगार देखी, क्या कनू के बेरा।।
गज कौ धम्यल वीक, पशमीण शाल। भोटमा बतानी भाई, भौत धन माल।।
रानी के आग्रह करने पर राजा और रानी दोनो उस स्त्री से मिलने गये। राजा ने कहा हे देवी आप यहा किसके साथ आयी हो। उस स्त्री ने कहा – “ मै यहा अपने पती के साथ आयी हू। आप लोग कौन है ? “ राजा ने कहा – मै बैराठ नरेश राजा प्रितम दुलाशाही हू , और यहा अपनी पत्नी धर्मा देवी के साथ आया हू।
रानी धर्मा देवी कहती है – हे देवी आप कौन हो और कहा से आयी हो ?
स्त्री कहती है - मै शौंकाचल के बड़े व्यपारी सुनपति शौक की पत्नी गांउली हू। संतान प्राप्ती की इच्छा से मै और मेरे पती मकर स्नान करने हरिद्वार आये है।
यह सुन कर रानी धर्मा देवी कहती है़ – हम भी यहा संतान प्राप्ती की इच्छा से हरिद्वार स्नान के लिए आये है।
राजा दुलाशाही और सुनपति शौक के मिलते ही वे जल्द ही अच्छे मित्र बन गये। पूजा और स्नान भी साथ मे ही किया। और एक दूसरे से विदा होने से पहले उन्हें एक विचार आया। की क्यू ना इस मित्रता को नाम दिया जाय।
दोनो दम्पतियों ने सोचा की यहा से जाने के बाद अगर हम दोनो परिवार मे किसी के यहा भी अगर पुत्र या पुत्री हुई तो हम उनका विवाह कर देगें। इतना ही नहीं राजा और सुनपति शौक ने तो प्रण भी लिया। और अपनी मित्रता को समधी के बंधन मे बदल दिया और एक दूसरे को अल्विदा कह कर अपने अपने निवास स्थान आ गये।
पर जब सुनपती शौक अपने घर को आ रहा था तो उसे आचानक ध्यान आया की अगर मेरे यहा पुत्री हुई तो उसे अपने वचन के अनुसार उसका विवाह बैराठ नरेश के पुत्र से कराना होगा। बैराठ राज्य तो हमारे भोट राज्य से बहूत दूर है। मै अपनी संतान से दूर कैसे रह पाउगां । उसे लगने लगा की शायद ये रिश्ता करके उसने गलती कर दी।
परंतु जब घर आते समय रास्ते मे बागेश्वर स्थित बागनाथ धाम आया तो सुनपति शौक ने कहा हे बाबा बागनाथ जी मेरी विनती सुनलो और मुझे पुत्र रतन का आशिर्वाद देना। मेरे वचन और संतान शुख दोनो को बचा लेना। परंतु होनी को कुछ और ही मंजूर था।
एक वर्ष बाद ही दोनो परिवार में नये मेहमान आने की खुश खबरी आयी। जल्द ही रानी धर्मा देवी ने एक तेजस्वी पुत्र को और देवी गांउली ने अपनी ही समान सुन्दर सी पुत्री को जन्म दिया।
राजकुमार का नाम मालूशाही तो देवी गांउली ने अपनी पुत्री का नाम राजूला रखा। राजा मालूशाही ने पूरे राज्य मे खुशियाँ मनायी और सुनपति शौक भी अपनी प्यारी सी पुत्री के जनमोत्सव का आयेजन किया।
दोनो ही परिवार संतान शुख में खो गये। धीरे धीरे समय बीत्ता चला गया। और दोनो ही परिवार अपने दिये वचन को भूल गये। राजा दुलाशाही के पुत्र मालूशाही अभी बाल्यावस्था में ही थे की कुछ कारणो से राजा दुलाशाही की मृत्यु हो गयी। राज पुरोहीतो के दवार राजकुमार के ग्रह कमजोर होने की अशंका के रहते जल्द ही राजकुमार मालूशाही का विवाह बल्यावस्था मे ही कर दिया गया।
राजकुमार मालूशाही बाल्यावस्था से ही कला और सौन्दर्य के प्रशंसक रहे और रचनात्मक कार्य मे ही हमेशा व्यस्थ रहते। जिसकी वजहा से वो राज काज में इतना समय नहीं दे पाते। उनको राज काज के प्रति रूचि लाने के लिए उनकी युवा अवस्था में आने तक राजकुमार मालूशाही के सात (7) विवाह हो चुके थे। उन्हें राजगदृदी तक का भार भी सौप दिया गया था। परंतु राजा मालूशाही अपने में ही खोये रहते थे। जंगलो मे भटकना और साधु संता का साथ उन्हें बहुत भाता था।
और इधर राजूला भी धीरे धीरे बड़ी हो रही थी । राजूला बाल्यअवस्था से ही बहुत सुंदर कन्या थी और नृत्य और गायन कला मे रुची रखती थी, और साथ ही बहूत समझदार और तर्कशक्ति भी उनके गुड़ों मे शामिल थे।
एक बार राजूला ने अपनी मां देवी गांउली से पांच प्रश्न किये। -
“ मेरी प्यारी मां मुझे ये बताओ “
चारो दिशाओं में से कौन सी दिशा सबसे प्यारी है ?
और पेड़ो मे सबसे बड़ा पेडं कौन सा है ?
सभी गंगाओं में सबसे ज्यादा महत्व कौन सी गंगा का है ?
और देवो में कौन से देव सर्वश्रेष्ठ है ?
राज्यों में कौन सा राज्य सबसे अच्छा है ?
देवी गांउली अपनी प्यारी पुत्री दवारा इतने सारे प्रश्न पूछे जाने पर मुस्कराते हुए उसके प्रश्नो का उत्तर देती है।
हे पुत्री ǃ
चारो दिशाओं में सबसे प्यारी दिशा पूर्व दिशा है , क्यूकी पूर्व दिशा ही नवखण्डी प्रथ्वी को प्रकाशित करती है।
पेड़ों में सबसे बड़ा पेड़ है पीपल का , क्यूकी पिपल के पेड़ पर बहूत से देवता निवास करते है ।
और देवो मे सर्वश्रेष्ठ देव है महादेव शिव-शंकर, क्यूकी वो ही एक मात्रदेव है जो केवल जल चड़ाने से ही प्रशंन हो जाते है। इसलिए उनहें आशुतोष भी कहा जाता है।
राज्यों में सबसे अच्छा राज्य है बैराठ राज्य , क्यूकी बैराठ राज्य के क्त्यूरी राजाओं से प्रजा हमेंशा प्रशंन रहती है। बैराठ राज्य मे प्रजा को न्याय और शुखी जीवन का अधीकार है।
यह सुन के राजूला कहती है “ मॉ मै तो बैराठ राज्य में ही विवाह करूगीं। “ अपनी प्यारी पुत्री के मुह से विवाह की बात सुनकर देवी गांउली जोर जोर से हसने लगती है। मॉ के दवारा अपना परीहास होता देख रजूला रूठ के चली जाती है।
कछ समय यू ही व्यतीत होने के बाद दोनो ही अपनी युवा अवस्था में आ जाते है। और अब राजूला और मालूशाही दोनो को विचित्र स्वपन आने शुरू हो जाते है। कभी उन्हें गंगा नदी की बड़ी बड़ी लहरों के स्वपन आते है तो कभी हरीदवार मे लगने वाले विशाल मेले के।
राजूला और मालूशाही दोनो ही अपने माता पिता को इन स्वपन के बारे मे बताते है। परंतु माता पिता उन्हें केवल स्वपन कह के टाल जाते है। पर दोनो ही विचलित रहने लगते है।
व्यपारी सुनपति शौक पुत्री के चहरे पर अशंकाओ को देख के चिंतित होता है परंतु वो अपनी पुत्री को अपने से दूर नहीं करना चाहता था।
इधर राजा मालूशाही भी अपने राज्य और रानीयों के बीच धुट रहे थे। इसलीए राजा मालूशाही भी अपने आप को व्यथ रखने के लिए शिकार खेलने को निकल जाते है। और उधर राजूला भी धर से निकलने के लिए अपने पिता से व्यापार के लिए जाते समय खुद भी उनके साथ आने की जिदृद करने लगी।
पिता सुनपति शौक अपनी पु़त्री को समझाता है – हे पुत्री मुझे व्यापार के लिए दूर दूर राज्यों में जाना पड़ता है तुम मार्ग की कठनाईयों को सह नहीं पाओगी। पर राजूला कहा मानने वाली थी। थक हार के सुनपतिशौक अपनी पुत्री को अपने साथ ले जाता है।
राजूला भी बहुत धैर्यवान और हर विपत्ती का सामना करने मे सक्षम थी। अपने पिता के साथ उनके व्यापार मे उनकी सहायता भी करने लगी। ये सब देख के सुनपती शौक को बहुत प्रशंनता हुई।
इसी तरह एक बार भगवान की महिमा से सुनपति शौक अपनी पुत्री के साथ व्यपार करने का लिए बैरठ राज्य के शहर चौखुटिया पहुचा। शहर चौखुटिया के पश्चिम राम-गंगा नदी के तट पर अपना डेरा डाला। और खुद सुनपति शौक रोज बैराठ राज्य में व्यपार करने के लिए जाते। और राजूला व्यापार के लिए लाए मवेशी जैसे भेड़, बकरी और गायों को चारा कराने के लिए वही राम-गंगा के तट पर उनके ग्वाला रहती।
एक दिन जब राजूला रोज की तरह अपने मवेशीयों की ग्वाला थी। उस दिन मालूशाही भी राज्य के किसी काम से राम-गंगा के तट के गुजर रहे थे। अधिक गर्मी होने के कारण वो जल पीने के लिए राम-गंगा के तट पर रोके। जल की शीतलता से प्रशंन हो कर उनका मन राम-गंगा में स्नान करने को हुआ और अपने अंगरक्षकों को विष्राम करने का आदेश दे कर अकेले ही राम-गंगा के शीतल जल में स्नान करने के लिए नदी में उतर गये।
नदी में नहाते नहाते वो अपने स्थान से बहुत दूर निकल आये। जब वो स्नान करके निकले तो उन्होंने अपने आप को नये स्थान पर पाया। वो नदी से बाहर आ कर अपना वह स्थान ढूंढने लगे जहा पर उन्होंने अपने वस्त्र रखे थे। उन्हें दूर दूर तक कोई नजर नहीं आ रहा था। यह तक उनके अंगरक्षक तक नहीं दिख रहे थे।
मालूशाही अपने भीगे वस्त्रों मे ही नदी किनारे अपनी सेना और वस्त्रो की खोज मे भटकने लगे। मालूशाही थोड़े परेशान हो गये थे और उन के समझ में कुछ नही आ रहा था। तभी उनके कानो में एक मधुर आवाज पड़ी। वो आवाज राजूला की थी जो अपने मवेशीयों को गीत गाते हुए चारा करा रही थी। मालूशाही राजूला की मधूर शुरों की ओर खिचे चले गये। मालुशाही ने जैसे ही राजूला के देखा वे अपनी परेशानी को भूलकर राजूला के सुंदरता और उसके मधुर संगीत में खो गये। वही खड़े हो कर राजूला के गीत संगीत का आनदं लेने लगे। राजूला भी अपने कार्य में व्यस्थ थी। उसे भी मालूशाही के आने का आभास नहीं हुआ।
जब राजूला का संगीत समाप्त हुआ। और वो वापस जाने को हुई तो उसे अपने सम्मुख अंजान व्यक्ति को देख के गुस्से मे बोली – कोन हो तुम और यू गीले वस्त्र में किसी स्त्री से सम्मुख खड़े होने में तुमें लज्जा नहीं आती।
राजूला के कड़े शब्द सुनकर मालूशाही अपने होश में आये और कहने लगे – हे देवी मेरा नाम मालूशाही है, मै रास्ता भटक गया हू। आपके गीनों की मधूर संगीत सुनकर यहां आपकी सहयता लेने आया हू। ये सुनकर राजूला उनकी वेश भूशा देख कर कहती है- तुम ऐसी दशा में कैसे आये।
मालूशाही कहते है – मैं मार्ग से जाते समय गर्मी से हुई थकान को दूर करने का लिए नदी में स्नान करने को उतरा परंतु स्नान करते करते सायद में थोड़ी दूर आ गया। मेरे शूखे वस्त्र भी उसी स्थान पर रह गये है। इस लिए मुझे इस दशा मे ही आपके सम्मुख आना पड़ा। क्या आप मेरी सहायता कर सकती है। राजूला को मालूशाही की स्थती पर हंसी आने लगी। मालूशाही ने जब राजूला को मुस्काते हुए देखा तो। मालूशाही ने कहा – हे देवी किसी की मजबूरी पर हंसना सही नहीं होता। अगर हो सके तो मेरी सहायता करे।
राजूला पहले कुछ सोचती है पर फिर मालूशाही की सहायता करने को तैयार हो जाती है। मालूशाही अपने उस स्थान के बारे में बताते है और फिर मालूशाही और राजूला दोनो साथ मे वो स्थान ढूंढ ते है। अपने वस्त्र पा कर मालूशाही बहुत खुश होते है, और राजूला को धन्यवाद कह के चल देते है।
आगे जा के मालूशाही अपने अंगरक्षकों के साथ अपने कार्य के लिए निकल पड़ते है। परंतु पूरे मार्ग वो राजूला से हुई बातों का ही विचार करते रहते है। उधर राजूला भी रात भर मालूशाही का ही विचार कर रही थी।
मालूशाही भी रात भर राजूला के विचार में अपने महल मे यहा से वहा घुमता रह। दोनो ही जाने अंजाने मे एक दूसरे के प्रती आस्कत हो गये। अगली सुबह होते ही मालूशाही फिर से राजूला से मिलने के लिए अकेले निकल गये। राजूला भी रोज की तरह अपने मवेशीयों के साथ बैठे बैठे मालूशाही के बारे मे ही सोच रही थी। की तभी मालूशाही फिर से राजूला के पास पहुच गये। उन्हें देख कर राजूला को पहले तो प्रशन्नता हुई पर बीना प्रयोजन मालूशाही के वहा होने पर थोड़ा गुस्से में बोली – अब किस कारण से आना हुआ आपका।
यह प्रश्न सुनकर मालूशाही को कोई उत्तर नहीं सुझा तो मालूशाही ने कहा – हे देवी कल आपने मेरी बहुत सहायता की परंतु मैं आपका नाम ही पूछना भूल गया। सारी रात मैं यही सोचता रहा कि मेरी सहायता करने वाली सुंदर स्त्री का नाम जरूर पता होना चाहिए। इसलिए मैं आपका नाम जानने के लिए पुनः यह आया हु।
यह सुनकर राजूला पहले तो मालूशाही को प्रश्नचिन्ह के साथ देखती है पर फिर मुस्कुरा के कहती है। नाम जानने के बाद तो आप दोबारा यहा नहीं आओगे ना। मालूशाही कहता है – शायद ।
राजूला कहती है- मेरा नाम राजूला शौंक है। मैं भौट(भूटान) राज्य के व्यापारी सुनपति शौंक की पुत्री हु। हम यहा बौराठ राज्य में व्यपार करने के लिए आये है। और इसी तरह राजूला और मालूशाही बातों में व्यस्थ हो जाते है। रोज दोनो मिलते और देर तक वार्ता करते।
शीत ऋतु का अंत के साथ बसंत ऋतु का आगमन होने को था। सुनपति शौक कहता है हे पुत्री हमें यह बहुत समय हो गया है। जल्द ही वसंत ऋतु का अगमन हो जायेगा। इसलिए हमें अब अपने राज्य चले जाना चाहिए। यह सुन कर राजूला चिन्तित हो जाती है। राजूला मालूशाही से दूर नहीं जाना चाहती थी।
जब मालूशाही राजूला से मिलने आता है। तो राजूला उसे सारे बात बताती है। की आब वो और दिन यह नहीं रुक सकती है। यह सुन कर मालूशाही कहता है - राजूला मैं तूम्हारे बिना कैसे रहुगां। राजूला कहती है तुम भी हमारे साथ हमारे राज्य चलो वही कोई काम शुरू कर लेना।
यह सुन कर मालूशाही कहता है- राजूला मुझे माफ करना मैं तुम्हें ये नहीं बताया की मैं बैराठ राज्य का राजा हू। मुझे लगा अगर मैने तूम्हे बताया तो शायद तुम मुझसे बात न करो। मैं तुमसे दूर नहीं जाना चाहता। परंतु मैं अपना राज्य छोड़ के भी इतने दूर नहीं जा सकता। परंतु एक रास्ता है। अगले वर्ष शीत ऋतु में बागनाथ जी के मंदिर के उत्तरैनी कौतीक मैं हम मिलेगें और बागनाथ जी के मंदिर मे ही हम विवाह करेगें। तब तक तुम्हे अपने माता पिता के साथ ही रहना होगा। मैं उत्तरैनी कौतीक में तुम्से मिलने जरूर आऊगां। यह सुन के राजूला उदास हो जाती है। अपना वचन जरूर पूरा करना, यह कह कर राजूला मालूशाही से विदा ले कर अपने पिता के साथ वापस अपने घर आ जाती है।
परंतु राजूला का मन अब किसी कार्य में नहीं लगता है। वो दिन रात मालूशाही के विचार मे ही खोई रहती थी। इधर मालूशाही भी राजूला की यादों में खोय रहते थे। राज्य के कार्यो में भी रुची नहीं ले रहे थे।
यूहीं दिन गुजरते रहे। और वर्षा ऋतु आयी और आ के चली गयी। राजूला मालूशाही का इंतजार करती रही। इधर मालूशाही की माँ का स्वास्थ ठिक न होने के कारण मालूशाही अपनी माता के उपचार में व्यस्थ रहने लगा। उधर राजूला जल्दी से शीत ऋतु के आने का इंतजार कर रही थी।
एक दिन भोट राज्य में एक उत्सव हुआ। जिसमे भोट राज्य के सभी लोग जा रहे थे। यह सुन कर सुनपति शौक ने भी अपनी पूत्री राजूला से कहा चलो हम लोग भी इस उत्सव में कुछ व्यापार कर लेंगें। सुना है दूर दूर से राजा इस उत्सव में आ रहे है। पहले तो राजूला का मन किसी उत्सव में जाने का नहीं था परंतु यह सोच के की शायद राजा मालूशाही भी इस उत्सव में आ रहे हो। यह सोच कर वो भी अपने पिता के साथ उत्सव में आने को तैयार हो जाती है।
उत्सव में राजूला की आँखे हर जगह मालूशाही को ही ढूंढ रही थी। परंतू राजा मालूशाही अपनी माँ की सेवा से व्यस्थ थे। उत्सव में राजा मालूशाही तो नहीं पहुचे परंतु भोट राज्य के राजा की नजर राजूला पर पड़ी और राजूला की सुंदरता को देख के वो मंत्र मुग्द हो गये उन्होने अपने सेवकों से कहा जा कर पता करों इतनी सुंदर स्त्री इस भोट राज्य में कहा से आयी।
सेवको ने राजा के बताया ये तो अपने ही राज्य के प्रशिद्ध व्यापारी सोनपती शौक की पुत्री राजूला है। यह सुन कर राजा कहता है इतनी सुंदर स्त्री हमारे ही राज्य में थी और हमें पता ही नहीं था। अगले ही दिन भोट के राजा सुनपति शौक के घर उस की पुत्री का रिशता मांगने पहुच जाता है।
सुनपती शौक राजा का रिशता सुन के खुश हो जाते है। भोट में ही अगर उनकी पूत्री का विवाह हो गया तो वो जब चाहे अपनी पुत्री से मिलने जा सकेगें।
सुनपती शौक बिना राजूला से पूछे ही उसका विवाह भोट के राजा से अगले वर्ष करने के लिए तैय कर देते है।
परंतु जब राजूला की मां उसे बताती है तो वो बहुत उदास हो जाती है। वो मालूशाही के सिवा किसी से भी विवाह नहीं करना चाहती थी। जल्द ही शीत ऋतु का आगमन हो जाता है।
राजूला मालूशाही से मीलने जाने के लिए उपय सोचती ही। परंतु उसे कुछ समझ मे नहीं आता है। फिर वो तरकीब सोचती है। वो अपनी मां से कहती है की रात तो मेरे स्वप्न में एक बाबा आये थे और उन्होने कहा की मेरे लिए बागनाथ के मंदिर मे भेट ले के आना। उसकी मां कहती है वो बाबा बागनाथ ही आये होगें वे हमारे ईष्ट देव है। वो हमारी हर इच्छा पूरी करते है। तुम्हारे विवाह के पश्चात तुम्हारे पिता के साथ हम सब जा के बागनाथ जी को भेंट चढांयेगें।
यह सुनकर राजूला कहती है पर बाबा तो अभी आये है तब तक रूकना सही नहीं होगा। इस पर उसकी मां कहती है अभी तो तुम्हारे पिता जी के पास समय नहीं है। तो राजूला कहती है मै चली जाती हू उनके स्वप्न में थोड़े आये है बाबा बागनाथ जी।
पूत्री का बात सुन कर मां गाउली मुस्कराती है और कहती है कि परंतु बागनाथ जी का मंदिर बहुत दूर है वहा अकेले जाना उचित नहीं होगा। इस लिए अपने पिता के वापस आने तक इंतजार करों।
राजूला को पता था ऐसे तो उसके माता पिता उसे नही जाने देगें। इसलिए उसने अपने पिता के व्यपार से वापस आने पर एक दिन जोर से पेट दर्द का बहाना बनाया। और अपने माता से कहने लगी मझे बागनाथ के दर्शन को जाना ही होगा। अन्यथा मेरा स्वास्थय सही नहीं होगा।
अपनी पुत्री की ऐसी दशा देख कर सुनपति शौक और उसकी पत्नी दोनो चिन्तित हो गये। और अपनी पुत्री से कहा पुत्री हम जल्द ही चलेगें बाबा बागनाथ के दर्शन के लिए। परंतु राजूला तो अकेले जाना चाहती थी, वो जानती थी उसके माता पिता उसे अकेले तो बागनाथ जी के दर्शन को नहीं जाने देंगे।
इसलिए एक दिन राजूला बिना बताये अपने घर से बागनाथ जी के दर्शन को निकल गयी। जाते समय अपनी एक शखी को कह दिया की माता पिता को समझा देना की वो बागनाथ के दर्शन को गयी है और उसकी चिन्ता न करें मैं शीघ्र घर वापस आ जाऊँगी।
म्यर गोय दुखः इजा तू भलिक रये। खये पिये मेरी इजा शोक झन कये।।
राजूला अपनी शखी को दिखाने का लिए दो बकरी भी ले जाती है यह कह कर की वो बागनाथ जी को इन बकरीयों की भेंट चढ़ाऐगी। राजूला की शखी उसे बहुत रोकती है पर राजूला नहीं सुनती है और मालूशाही से मिलने की इच्छा लिए बाबा बागनाथ जी का नाम ले कर चल देती है।
राजूला चलते चलते जल्द ही घने जंगल में पहुच गई। रात होने के साथ ही उसे डर भी लगने लगा। उसे अपनी माँ की बातें याद आने लगी। बहुत लम्बा रास्ता है। बहुत घना जंगल पढ़ते है और उतने ही खतरनाक जंगली जानवर भी है। राजूला सोचती है कही गलती तो नहीं की उसने अकेले आ कर।
घनघोर जंगल छा, आब कथां जाण। शेर या बागैलै, आज मैं जरूरे खाण।।
म्यर इजा लै कोछी, नजा चेली वोति। मरूहणी आयी गोय, आज मैं ले येती।।
घने जंगलो में डरते डरते राजूला मालूशाही को याद करते हुए चलती रहती है। डर की वजह से उसके हाथों से बकरी भी कही छूट जाती है जिसे वो बागनाथ जी को भेंट चड़ाने के लिए ला रही थी। पर अभी तो राजूला मालूशाही के बारे मे ही सोच रही थी। उसे तो जल्द से जल्द मालूशाही से ही मिलना था। परंतु बागनाथ जी को देनी वाली भेंट को राजूला ने रास्ते मे ही खो दिया। बागनाथ जी राजूला के इस लापरवाही से नाराज हो गये औल मालूशाही अपनी माता की सेवा मे व्यस्थ हो कर उत्तरैणी कौतीक में जाना ही भूल गया। उधर राजूला ने कई दिनो की यात्रा पूरी करके बागनाथ धाम पहुच गयी।
बटा लारे राजूला मालसाई ध्यान। पूजी गे राजूला अब बागनाथा थान।।
राजूलकौ रूप रंग लक्ष्मी समान। मालसाई मज जारे राजुलक ध्यान।।
राजूला बागनाथ धाम पहुच कर देखती है। यह तो बहुत बड़ा मेला लगा हुआ है। जाने कहा कहा से इतने सारे अलग अलग परिधानो में लोग इस पावन स्थान पर आये है। अब राजूला को ये चिंता होने लगी की अब वो मालूशाही को यहा कैसे ढूंढेगी। राजूला मालूशाही के ध्यान मे ही थी।
म्यल हैरो बागेश्वरा बड़े भारी भीड़ा। राजूलका दिल मजा मालसाई पीडड़ा।।
देश देशा लोगा आरी कौतीका लै येती। हे ईश्वरा भगवाना मालुसाई कती।।
राजूला ने एक तरफ से मेले में घूमना शुरू किया। इतने बड़े मेले में मालूशाही को ढूंढना आसान नहीं था। परंतू राजूला हार मानने को तैयार नहीं थी। और बागनाथ जी का नाम ले के पूरा मेला धूमने लगी। मन मे मालूशाही से जल्दी न मिल पाने की पीड़ा लिए वो पूरा मेला देख रही थी। कही नये नये पकवान थे कही विभिन्न रंगो की वेश भूषा मे सजे लोग, कही गीत गाये जा रहे थे तो कही झोड़ा( झोड़ा एक तरह का लोक गीत होता है जो की खुशी के मौके में कुमाऊ और गढ़वाल में लोगो द्वारा बड़े उल्लास के साथ गाया जाता है)। बागनाथ धाम की छटा देख के राजूला को खुशी भी होती है। परंतु वो मालूशाही के न मिलने से परेशान भी हो जाती है।
धन धन यो मुलुक एतुक रंगील। सबै ढूड़ी हलौ जब मालसाई नि मिल।।
नि मिलन मालसाई है गेछा निराशा। राजूला पहुंची गेछा बागनाथा पासा।।
जब बहुत ढूंढने के बाद भी मालूशाही नही मिलता है तो राजूला थक-हार कर बागनाथ जी के पास जाती है। उनसे कहती है। है बागनाथ ज्यू तुम तो सब जानने वाले हो। मै मालूशाही के लिए इतनी दूर से आयी हू पर मालूशाही कही नही मिला मुझे। यह कह कर राजूला खूब रोती है।
हाथ जोड़ी अर्ज कनु धरि बटि ध्यान। दयाल है जाओ तुम इशवरा भगवाना।।
बहुत देर तक रोने के बाद राजूला को गुस्सा आता है। राजूला कहती है। हे बागनाथ जी अगर आप में शक्ति होती तो में जरूर मालूशाही से आज मिल पाती । मैं इतनी दूर से तुम्हारे पास आयी और तुम मेरी इतनी सी इच्छा पूरी नहीं कर पाये। तुम में कोई शक्ति नहीं है। पागल है वो लोग जो इतनी दूर से यहा भीड़ लगाने आते है। राजूला गुस्से मे बागनाथ जी का अपमान कर देती है। अपनी इच्छा पूरी ना होते देख वह निश्चय करती है कि वह बैराठ राज्य जा के ही मालूशाही से मिलेगी।
मन्दिरा बै भ्यरा आई बट्टा लगि गेछा। बागेश्वरा गरूड़ बै कौस्याणी आ गेछा।।
राजूला ने कई शहरो की यात्रा की जहा उसे बहुत से कष्टो का सामना भी करना पड़ा। जंगल से जाते समय एक शक्तिशाली ग्वाले की नजर अकेली राजूला पर पड़ी। राजूला के उज्याली सूरत और मोहनी चाल पर वो मोहित हो गया। राजूला को रोक कर उसके इस तरह से जंगल मे भटक ने का कारण पूछने लगा। राजूला ने अपना पूरा हाल बताया। ग्वाला कहने लगा हे सुन्दरी वो तो राजा है वो क्यु तुम्हें अपनी रानी बनायेगा। तुम मेरे साथ चलो में तुम्हे अपनी रानी बना के रखुगां।
हिट म्यारा घर सुवा, मेरी राणी हली। और कमा मैं करूला, तू रोटी पकाली।।
राजूला ने कहा। नहीं में तो सिर्फ मालूशाही की हू मुझे बस बैराठ राज्य का रास्ता बता दो। परंतु वो ग्वाला इतनी सुंदर स्त्री को हाथ से जाने नहीं देना चाहता है। वो कहता है – हे स्त्री प्यार से मान जा वरना में बल को प्रयोग भी कर सकता हू। मुझे से बलशाली तो तूझे कोई राजा भी नहीं मिलेगा।
राजूला कहती है मेरे मालूशाही तुझसे बहुत बालशाली है। तूझे तो मैं ही हरा दूगीं , तु मुझे कमजोर मत समझ और मेरे रास्ते से हट जा। पर ग्वाला नहीं मानता है और राजूला को पकड़ के अपने साथ ले जाने लगता है। तब राजूला भोट राज्य में होने वाला शक्तिशाली विष को उस ग्वाले पर फेंक देती है।
जिस के कारण वो ग्वाला वही ढेर हो जाता है। राजूला उचित समय देख कर वह से निकल जाती है। इस तरह कई बार राजूला ने अपनी जान बचाई। राजूला सुन्दर होने के साथ साथ अपने सम्मान की रक्षा करने में सक्ष्म थी। बहुत सी परेशानीयों का सामना करते हुए अखिरकार वो बैराठ नरेश के राज्य में पहुच जाती है।
राजूला सीधे राज दरबार में चली जाती है और राजा मालूशाही से मिलने का प्रयास करने लगती है। परंतु राजा के सेवक उसे मालूशाही से मिलने नहीं देते है। राजूला अब अधिक समय नष्ट नही करना चाहती थी। इसलिए वह अपने विष से सभी को मूर्छित करती हुई राज महल में परवेश कर जाती है। उस समय मालूशाही चिर निद्रा मे सोए हुए थे।
राजूला मालूशाही को सोया देख कर थोड़ा शान्त होती है और सोचती है अब वो मालूशाही को अपने दिल का हाल सुना पायेगी। परंतु राजूला द्वारा किये विष का प्रभाव राजा मालूशाही पर भी हो जाता है। जिस कारण राजूला मालूशाही को बहुत उठाने का प्रयास करती है। परंतु मालूशाही तो मूर्छित पड़े रहते है। राजूला बहुत रोती है, इतने पास आ कर भी मालूशाही से न मिल पाने का शोक से आहत होती है। थक हार कर राजूला एक पत्र लिखती है। और उसे राजा के सिरहने पर छोड़ कर अपने घर वापस चली आती है।
जब मालूशाही से विष का असर उतरता है। तो मालूशाही को राजूला का पत्र मिलता है। मालूशाही पत्र पढ़ता है – प्रिय मालूशाही तूम तो अपनी राजूला को भूल ही गये। मैं तुम से मिलने इतनी दूर आयी और तुम तो अपनी निद्रा मे ही खोये हुऐ थे। तुम्हे इतना उठाने के प्रयास के बाद भी जब नहीं उठे तो मैं ये पत्र लिख रही हू। मैं ये सूचना देने आयी हू की मेरे माता पिता ने मेरा विवाह भोट राज्य के राजा से मेरा विवाह तय कर दिया है। अगर तुमने अपनी माता का दूध पिया है तो मुझे भोट राज्य लेने आना। मुझे तुम्हारा इंतजार रहेगा। तुम्हारी राजूला शौक्याणी।
राजूला का पत्र पढ़ कर मालूशाही को बहूत दूखः हुआ। राजूला इतनी दूर उससे मिलने आ गयी और वो सोता ही रह गया। मालूशाही तुरंत अपनी माता के पास आज्ञा लेने जाता है। मालूशाही तुरंत पूरी सेना के साथ भोट पर आक्रमण कर राजूला को अपने राज्य ले कर आने की रण नीती बनाता है। परंतु मालूशाही की माँ रानी धर्मा देवी कहती है। पुत्र तू जानता नहीं है। भोट राज्य अपने जहरीले बिष के लिए प्रसिद्ध है। तेरी पूरी सेना भी भोट के बिष का सामना नहीं कर सकती।
तू भोट जाने की बात अपने दिल से निकाल दे। तु इक्लौता पुत्र है और तूझ पर ही पूरै बैराठ की जिम्मेदारी है। अच्छा राजा वो ही है जो अपने कर्तव्य को पहचाने। राजूला का विवाह भोट के राजा से हो रहा है तो तुम उसके लिए परेशान क्यों हो रहे हो।
मालूशाही कहता है। माता आप तो जानती है भोट राज्य में न तो अच्छी फसल होती है। और वहा का जंगल भी बहुत घना है। वहा का जीवन आसान नहीं है मेरी राजूला जैसी कोमल सुन्दरी वहा अपना सारा जीवन कैसे बितायेगी। मुझे उसे लेने जाना ही होगा। वो पूरा जीवन मेरे आने की राह देखेगी। परंतु रानी धर्मा देवी मालूशाही को भोट जाने की आज्ञा बिल्कुल नहीं देती है।
माँ की आज्ञा न मिलने से दूखी राजा को कोई मार्ग नहीं सूझता है। वो बहुत परेशान रहने लगता है। तभी राजा को अपने कत्यूरी राज वंश के गुरू बाबा गोरखनाथ का ध्यान आता है। राजा अपनी राजूला के पास जाने के लिए अपने गूरू गोरखनाथ की शरण मे चले जाते है।
राजा मालूशाही बाबा गोरखनाथ के पास जा के कहते है। हे गुरू देव मेरी माता ने मुझे भोट जाने की आज्ञा नहीं दी है। और मेरा भोट जाना अत्यंत जरूरी है। मेरी व्यथा सुनो और कोई हल बताओ। बाबा गोरखनाथ जी राजा की बात सुन कर कहते है। हे राजन आप राजा हो आप पर पूरे राज्य की जिम्मेदारी है। आप एक स्त्री के मोह में अपनी जान दाव पे नहीं लगा सकते। इस पर राजा कहता है। राजूला के बिना भी अब मेरा जीवन संभव नहीं है।
बाबा- हे राजन तुम राजा हो, तुम भोट राज्य के बिष से जीत नहीं सकते और रही राजूला के मोह की तो मैं तुम्हे राजूला की जीवंत मूर्ति अपने यज्ञ से उत्पन्न कर के दे देता हू । आप पूरे जीवन उस मूर्ती से अपना मोह व्यक्त कर सकते है।
मालूशाही- हे गूरू देव मैं भी कोई कमजोर पुरूष नहीं हू। मुझ में कत्यूरी वंश का खून है। और हजारों लोगों से अकेले यूद्ध करने में शक्षम हू। मूझे राजूला ही चाहिए। नहीं तो मैं यही आपके चरणों में ही अपनी जान त्याग दूंगा। मुझे ये राज पाठ कुछ नहीं चाहिए। मुझे अपना दिया वचन निभाना है। बस आप मुझे अपना शिष्य बना लीजिऐ।
बाबा- हे राजन ठीक है मैं आप के प्रेम की गहराई को समझते हुए आप को एक अवशर अवश्य देना चाहता हू।
पहले आप एक जोगी को रूप धारण कर मेरी दीक्षा लीजिए उसके बाद ही हम देखेंगे आप क्या कर सकते है।
राजा मालूशाही ने खुशी से राजा के वस्त्र त्याग के शाधू का वेष धारण किया। एक राजा अपने प्रेम को पाने का लिए अपने फूलो से सजे तख्त को छोड़ के काँटों के बिस्तर पर लेटने को तैयार हो गया।
छह माह की कठिन शिक्षा पूर्ण की । शिक्षा मे बाबा ने राजा को बिष से अपनी और अपनी सेना की रक्षा करने का उपाय भी सिखाये। शिक्षा पूरी होने पर राजा ने बाबा गोरखनाथ जी से उनकी गूरू दक्षणा देने के लिए प्रश्न पूछा।
बाबा ने कहा हे राजन मुझे कोई दक्षिणा नहीं चाहिए । पर अगर तुम कुछ करना ही चाहते हो तो जाओ अपनी माँ से भीक्षा ले के आओ।
राजा योगी का रूप धर के अपनी माता के पास जाता है। मालूशाही अपने महल मे जा के भीक्षा मांगता है। उस के महल मे कोई भी उसे पहचान नहीं पाता है। सेवकों के भीक्षा देने पर मालूशाही कहता है। नहीं मूझे तो रानी धर्मा देवी से ही भीक्षा लेनी है।
माता धर्मा देवी को सूचना दी जाती है। तो माता धर्मा देवी कहती है। योगी राज के भोजन को प्रबन्ध करो। बहुत दिनो बाद कोई योगी माहराज आये है। हम उन्हें अपने हातो से भोजन करा के ही दान देगें।
रानी धर्मा देवी ने योगी राज को भोजन अपने हाथो से लगाया और उन्हें भोजन ग्रहण करने का अनुरोध किया। योगी राज भोजन के लिए बैठ गये। और जैसे ही भोजन प्रारम्भ किया माता ने कहा- पूत्र तुमने मेरी बात नहीं मानी और और आज योगी का रूप धारण करके मेरे पास आये हो। मैं तुम्हारी इस साधना को विफल नहीं करूगीं परंतु अपना ध्यान रखना और राजूला को जल्दी वापस ले के आना। मेरा आशिर्वाद तुम्हारे साथ है।
ये सुन के राजा खुश हो गये। परंतु उन के मन में एक प्रश्न आया। राजा ने कहा- हे माता इस योगी कि वेश भूषा में तो मुझे कोई पहचान नहीं सका। परंतु आप ने कैसे पहचाना मुझे। माता मुस्कुराई और बोली बेटा पूरे राज्य में एक तुम ही हो जो पंच ग्रासी है।
राजा अपने भोजन करने से पहले भोजन के पाँच हिस्से करते थे। जो की एक ईश्वर , आकाश, पितृ, गुरू और जीव के लिए छोड़ देते थे। और पाचवा ग्रास का ही सेवन करते थे। इसलिए भोजन करने से उनकी माता को पता चल गया।
यह सुन कर मालूशाही अपनी माता के चरण स्पर्श कर के दक्षिणा ले कर अपने गूरू के पास आता है। बाबा गोरखनाथ कहते है। जाओ इसी वेश भूषा में अपनी राजूला के पास जा कर भिक्षा ले कर उसका हाल समाचार लो। और फिर स्थिती के अनुसान सेना के साथ आक्रमण कर के यूद्ध में विजय हाशिल करना । मेरा आशिर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ है।
राजा मालूशाही नौं लाख(9,00,000) सैनीको के साथ भोट राज्य की ओर चल देता है। गुरू गोरखनाथ की आज्ञा के अनुसार राजा मालूशाही पहले योगी का भेष धर के सुनपति शौक के घर राजूला से मिलने जाता है।
मालूशाही जब राजूला के घर पहुचता है। तो उस समय राजूला उदास मन से कबूतरो को दाना डाल रही होती है। वहा पर राजूला के बहुत से सेवक भी थे। यह देख मालूशाही कहता है भीक्षा मिलेगी देवी। राजूला योगी राज के देखती है और अपनी सेविका से कहती है जाओ योगी राज को भीक्षा दे दो। खतरे को देखते हुए मालूशाही राजूला को अपनी सच्चाई सबके सामने नहीं बता सकता था। जब सेविका मालूशाही को भिक्षा देने आती है। मालूशाही भिक्षा लेने से मना करदेता है।
सेविका कहती है क्या हुआ योगी राज। मालूशाही कहता है। देवी मैं ने भिक्षा जिससे मांगी है उसी के हाथ से भिक्षा ग्रहण करता हू और उसे ही आर्शिवाद देता हू। राजूला पास में ही थी यह सुनकर राजूला कहती है। हे योगी राज मेरा भाग्य मुझे पहले ही पता है मुझे अब भाग्य से कुछ नही चाहिये।
यह सुन कर मालूशाही कहता है। हे देवी यू मायूश नही होते हो सकता है मेरे आर्शिरवाद से वो शीर्ध्र आ जाये जिसका तूम इतंजार कर ही हो। यह सुनकर राजूला को कुछ शक होता है। राजूला मालूशाही के पास आ कर कहती है। वो कैसे संभव है ।
योगी राज कहते है। देवी दुनिया में सबकुछ सम्भव है। अगर तुम मूझे भोजन कराओगी तो तुम भी समझ जाओगी। मालूशाही जानता था। जिस तरह मेरी माँ ने मुझे भोजन करते हुए पहचान लिया था । वैसे ही शायद राजूला भी मुझे भोजन करते हुए पहचान जाय।
राजूला मालूशाही के लिए ये भी कर के देख लेना चाहती है और जल्दी से अपने हाथों से योगी राज को भोजन कराने का लिए खुद ही भोजन तैयार करती है। योगी राज तब तक अच्छे से उसके घर का परीक्षण कर लेते है।
राजूला भोजन परोस कर योगी राज को बुलाती है। और जैसे ही योगी राज भोजन ग्रहण करना शुरू करते है। राजूला खुशी से चौक जाती है। और धीरे स्वर में कहती है। आप तो राजा मालूशाही है। यह सुन कर योगी राज धीरे से कहते है हा, और आप को लेने के लिए ही आया हू। परन्तु जब तक मै आप को लेजाने की योजना नहीं बना लेता हू। आप किसी को ये पता नही चलने देना।
राजूला खुशी से झूम उठती है उसे लगता है भगवान बागनाथ ने उसकी सुन ली। वो अपने सेवको से कहती है योगी राज कुछ दिन यही रहेगें इनके रहने का प्रबंध किया जाय। सेवक कहते है परंतु बिना मालिक के आज्ञा के इनके रहने का प्रबधं करना उचित नही होगा। हमे मालिक के क्रोध का सामना करना पड़ सकता है।
राजूला कहती है आप इनके रहने का प्रबधं करे हम पिता जी से आज्ञा ले के आते है। इस पर राजूला अपने पिता से उस योगी को कुछ दिन रोकने का आग्रह करती है। योगी राज की बात सुन कर सुनपति शौक भी अपनी पूत्री की बात मान लेता है।
राजूला रोज खुद मालूशाही के लिए भोजन बनाती और खुद ही मालूशाही को अपने हाथो से खिलाती। यह सब देख कर सुनपती शौक को लगता है राजूला योगी राज की सेवा कर उन्हें प्रसन्न कर उन का आर्शिवाद लेना चाहती है। इसलिए सुनपती शौक भी निश्चिन्त हो जाता है। और कुछ दिन ऐसा ही चलता रहता है। मालूशाही भी अच्छे से शहर की व्यवस्था देखकर योजना बानाता है।
परंतु एक दिन राज सुनपती शौक किसी कार्य से रात्री को योगी राज के कक्ष से समीप से गूजरते है तो उसे राजूला इतनी रात को भी योगी राज के पास क्यों है यह सोचकर। उसने अपने सेवको से योगी राज की निगरानी करने को कहा। जल्द ही सेवको ने सुनपती शौक को योगी राज की सच्चाई बता दी। मालीक ये योगी वास्तव मे योगी नही है। ये तो बैराठ राज्य का राजा मालूशाही है जो आपकी पूत्री से प्रेम करता है और आपकी पूत्री को ले जाने आया है। उसके साथ उसकी नौं लाख अजय सेना भी आयी है।
यह सुन कर सुनपती शौक घबरा जाता है। वो अपने सेवको से योगी राज पर नजर रखने को कहता है। और कहता है किसी को पता नहीं चलना चाहिए की हमें सब पता चल चुका है। सेवक वैसा ही करते है। सुनपती शौक जानता था की वो मालूशाही का सामना नहीं कर पायेगा। इसलिए वो भोट के राजा को पत्र लिख कर पूरी सेना के साथ आने का आग्रह करता है।
जल्द ही भोट का राजा भी अपनी सेना लेके वहा पहुच जाता है। यह देख कर मालूशाही भी अपनी सेना को युद्ध का आदेश दे देता है। पूरे 10 दिन का युद्ध के बाद मालूशाही विजयी हो जाता है। जिसमें भोट का राजा समझ जाता है इतनी बड़ी सेना से लड़ पाना संभव नही है। वह सुनपती को समझाता है की लड़ने से कुछ हासिल नहीं होगा। दूसरी कोई यूक्ति लगानी पड़ेगी। वह भोट के राजा को राजूला और मालूशाही के विवाह के लिए राजी हो जाने का पारामर्श देता है।
सुनपति शौक्य ये घोष्णा कर देता है कि वह राजूला और मालूशाही के विवाह के लिए तैयार है। जिसे सुनकर राजूला और मालूशाही दोनो खुश हो जाते है। शहर में विवाह की तैयारी शुरू हो जाती है। सुनपती शौक्य विवाह के अवशर पर पूरी सेना के भोजन का प्रबन्ध करता है। और सेना के भोजन से बिष मिला देता है।
परंतु अपने हुए नुकशान के क्रोध मे भोट का राजा राजूला और मालूशाही के भोजन में भी बिष मिला देता है। जैसे ही राजूला मालूशाही भोजन ग्रहण करते है वैसे ही पूरी सेना भी भोजन करना शुरू कर देती है। और विष के कारण धीरे धीरे सभी गिरने लगते है, तड़पने लगते है।
नौलाखा कत्यूर कणी, विष देय गौछा । हंसी उड़ी गोछा रामा, कदु लाश पड़ी रैंछा।।
राजूला को भी बिष से आधात देख मालूशाही कहता है। ये तो तुम्हारी पुत्री है इसे बिष क्यु दे दिया। भोट का राजा कहता है राजूला को बिष मैने दिया है। जो मुझे नही मिली वो मै किसी और की कैसे होने दे सकता हू। तब मालूशाही कहता है, मेरी माँ ने कहा था वह मत जा, वहा का बिष मेरी जान ले लेगा। पर मैने अपने मां की बात नहीं मानी।
कामयाब हई गयी भोटयु की चाल। कत्यूरू दगड़ भाई बुरौ रचौ जाल।।
उधर बैराठ में मालूशाही की माता धर्मा देवी को स्वप्न में मालूशाही की मृत्यू देखी जिससे विचलित होकर धर्मादेवी ने मालूशाही के मामा को गूरू गोरखनाथ जी के साथ बची पूरी सेना ले कर जाने को कहा। उधर मालूशाही और राजूला दोनो बिष से अचेत होकर गिर पड़े।
कुछ ही समय में मालूशाही के मामा उनके गूरू गोरखनाथ जी के साथ वह पहुच गये। उन्होंने अपनी सेना को भोट के राजा को परास्थ कर के भोट पर अधिकार कर लिया। और गूरू गोरखनाथ ने अपनी विध्या का प्रयोग कर राजूला और मालूशाही को बिष प्रभाव से बचा लिया। जय हो बाबा गूरूगोरखनाथ जी की।
गूरू गोरखनाथ जी ने ही पूरे उत्तराखण्ड में पूजा व्यवस्था की नीव रखी है। गुरू गोरखनाथ ही नाथ व्यवस्था के जनक माने जातै है। परंतु उस दिन नौं लाख वीर कत्यूरों की हत्या हूई। तभी से ये वीर नौ लाख कत्यूरों की पूजा की जाती है। अपने भक्तों पे दयाल नौ लाख भगवान कृपाँ कर उनके कष्टों से निदान दिलाते है। हमारी ओर से भी सभी नौ लाख कत्यूरों को हाथ जोड़ कर नमन।
मालूशाही राजूला, अपने मामा और गुरू गोरखनाथ के साथ बैराठ आ गये। जहाँ मालूशाही की माता धर्मा देवी ने अपनी पुत्र के आने की खुशी में पूरे राज्य में उत्सव का ऐलान कर दिया। इस तरह राजूला और मालूशाही अपने बैराठ राज्य में हसी खुशी रहने लगे। कदु दिन बिती गै ,कदु बिती गै साल। राजूला-मालूशाही कौ, युगौं करि याद।।
यह कथा उत्तराखण्ड के लोक गीतों में सुन्ने को मिलती है। बहुत प्राचीन कथा होने को कारण इस कथा के बहुत सी व्याख्या हुई है। जैसे कुछ गीतों में नौ लाख कत्यूरों के साथ राजूला और मालूशाही के भी मरने की बात कही जाती है। और कुछ में सभी के वापस आने की बात। परंतु हमने ये कथा अपने गाँव के सबसे बुजुर्ग व्यक्ति गोपाल राम गोस्वामी जी के अनुसान सुनाये जाने पर आधारित है। और कुछ कुमाऊनी लोक गीत की पंक्तिया भी इस कथा में सुमलित की है जो की इनके द्वारा हमें सुनाई गई है। हो सकता है इस कथा में कोई त्रुटी हो।
हम अपनी सभी त्रुटी को सुधारने को हमेशा तैयार है। आपके पास अगर कोई सुझाव या कथा के विषय में कोई जानकारी है तो हमें अवश्य हमारी वेब साईट की ईमेल आईडी पर सुचित करें। हम इस कथा में सुधार करने का प्रयास करेगें। हमारा मकसद ना तो किसी की आस्था को ठेस पहूचाना है। और न ही संस्कृती का अपमान करना। हम तो केवल लोगों तक प्राचीन कथाओ को पहूचाना चाहते है। उमीदं है आप सभी को हमारी ये रोचक प्रेम कथा पसंद आयी होगी।
जय बाबा गुरू गोरखनाथ।।
।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।
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