मैं तुम्हारे लिए...(प्रेम-गीत)
Writer:- |
मनिष पाण्डेय
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Total page:- |
1
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Type:- |
कविता
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Page no.:- |
1
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Date:- |
8/29/2017
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Description:- |
अपनी प्रस्तुत रचना मे कवी ने गीत के माध्यम से अपनी प्रीय को रिझाने का प्रयास किया है। प्रेम तो खुद में ही इतना खूबसूरत होता है कि उस पर कुछ भी लिखा जाय तो वो खुद ही खूबसूरत हो जाता है। परतुं इन पंक्तियों में कवी ने अपनी प्रीय की तुलनात्मक व्याख्या से इस प्रेम गीत को और भी खूबसूरत बना दिया है।
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प्रेम व्यक्त करने के बहुत से तरीके है और उनमें से एक तरीका है गीत के माध्यम से। और आज के गीत मे भी कवी ने प्रेम को एक नये रूप में व्यक्त करने का प्रयास किया है। जिसमें कवी अपनी प्रीयतमा की तुलनात्मक व्याख्या कर उसके प्रति अपने प्रेम को व्यक्त करने का प्रयास कर रहा है।
# मैं तुम्हारे लिए...(प्रेम-गीत)
मैं तुम्हारे लिए गीत बुनता रहूँ मेरे स्वर से तुम्हारा ही श्रंगार हो
रजनीगंधा के फूलों सी खिलती रहो तन बदन पे तुम्हारा ही अधिकार हो
दिल की दहलीज़ पर तुमने दस्तक जो दी बावरा मन खुशी से मचलने लगा
लब पे मीठी हंसी तैरने लग गयी कोना कोना बदन का महकने लगा
चाँदनी की तरह लिपटो बादल से तुम गिरती बूँदें तुम्हारा ही उपहार हो
तेरे कंगन की खनखन से खुशियां मिलीं तेरा सिंदूर जीवन का आधार है
मन ही मन में सनम मैं तुम्हारा हुआ मेरी सांसों में बहता तेरा प्यार है
मै यही चाहता हूँ मेरी जां तुम्हें गुल के गालों को रंगने का अधिकार हो
मैं तुम्हारे लिए गीत बुनता रहूँ मेरे स्वर से तुम्हारा ही श्रंगार हो.
……….मनीष "आशिक़ "
आज एक बार फिर मैं आप का दोस्त मनीष आशिक फिर से एक और प्रेम गीत ले कर आप सबके सामने प्रस्तुत हुआ हू। उमीद आप सभी को मेरी पिछली रचनाओ की तरह ही बेहद पसंद आयेगी। मै अपनी हर रचना में कुछ नया करने का प्रयास करता हू। जिसकी प्रेरणा मुझे आपके द्वारा मिलने वाले प्यार से ही मिलती है। आपके प्यारे प्यारे ईमेल का मूझे हमेशा इंतजार रहेता है। मेरी ईमेल आईडी है – meghapandu51@gmail.com
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