उत्तराखण्ड के देवता गंगनाथ जी.....
Writer:- |
सुन्दर जी
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Total page:- |
11
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Type:- |
प्रेम कहानी
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Page no.:- |
2
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Date:- |
4/17/2014
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Description:- |
उत्तराखण्ड में अनेको प्राचीन कथाएँ प्रसिद्ध है। उनहीं प्राचीन कथाओं में से गंगनाथ जी की कथा भी है। गंगनाथ जी कथा प्राचीन होने के साथ ही बहुत आधुनिक भी है। गंगनाथ जी पूरे उत्तराखण्ड में भगवान की तरहा पूजे जाते है। और उनके लाखो भक्त भी है। उत्तराखण्ड में गंगनाथ जी की कथा को एक गीत के माध्यम से उनकी पूजा में जगरी के द्वारा गाया जाता है। जो कि उत्तराखण्ड की स्थानिय भाषा में होता है। जिसे समझना इतना सहज नहीं होता। हमारी कथा केवल उसकी दर्शन मात्र है । पर आप को यह बहुत कुछ बता पाने में शक्षम है।...........
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जोशी जी को आयुर्वेद का अच्छा ज्ञान था। जब जोशी जी ने राजा के पुत्र की बिमारी की खबर सुनी तो वो राजा के पास गये और उनके पुत्र का उपचार करने को कहा। राजा ने अपने सभी वैद की औशधी का उपयोग करके देख चूके थे। और कोई फयदा होते उन्हें नजर नहीं आ रहा था। पर जोशी की बातों में उन्हें थोड़ी आशा नजर आयी और राजा ने उन्हें अपनी पुत्र के उपचार की आज्ञा दे दी।
जोशी जी ने पुरा 3 माह उनके पुत्र का उपचार किया और धीरे धीरे राजकुमार भी ठीक होने लगे। और जल्द ही राजकुमार अपने पैरो पे खड़े हो गये। ये देख कर राजा चंद और महारानी जी बहुत खुश हुए और उन्होने जोशी जी को अपने राज्य मे ही निवास करने की विनती की। और यही नही। राजा चंद ने उन्हें अपने राज्य में मंत्री का पद भी दे दीय़ा और पूरे राज्य में पूजा पाठ का काम देखने ओर करने की जिम्मेदारी भी दे दी। अब तो राजा जोशी जी से राज काज के कामों में शलहा भी लेने लगे थे।
एक दिन राजा जी ने जोशी जी से कहा आप तो इतने दूर राष्ट्र से आये है। पर आप ने इस दूरी के बीच में पड़ने वाले इतने खतरनाक जगंल और जगली जानवर से अपनी रक्षा कैसे की ? जोशी जी ने कहा- जैसे आपके पुत्र की रक्षा करने के लिए भगवान ने हमें इतनी दूर आपकी सहायता के लिए भेज दिया वैसे ही उसी भगवान ने हमें रास्ते की सभी कठिनाईयों से रक्षा के लिए एक वीर को भेज दिय़ा था। जिसने ना केवल हमारा मार्ग दर्शन किया बल्की जगंल के जगंली जानवरों से मेरी और मेरी पुत्री के प्राणों की रक्षा भी की। हम उस वीर के सुरक्षा मे होने के कारण ही आज जीवित है। वनरना हम यहा नहीं पहुच पाते। इतना सुनके राजा ने कहा वो वीर पुरुष कौन है? हम उस वीर पुरूष से मिलना चाहेगें । हमे आपके साथ उनका भी धन्यवाद करना चाहिए क्यूकि आपको यहा लाने वाला तो वो वीर परूष ही है। जोशी जी बोले सही कहा आपने राजन । जोशी जी ने कहा। उसका नाम गगंनाथ है। और वो हमें जगंल में ही भटकते समय मिला था उसके बारे में हम भी ज्य़ादा नहीं जानते । क्यूकी हमारे पूछने पे भी उसने कुछ सही से बताया नहीं। हम उसे आपके समक्ष जरूर ले के आयेगें महाराज।
इतना कह के जोशी जी अपने धर को लौट गये जब वो धर लौटे तो उन्होंने भाना और गगनाथ जी की बाते सुनी। और सोच में पढ़ गये। उनकी पुत्री भाना वीर गगंनाथ से प्रेम करने लगि थी और गगंनाथ जी भी उनकी पुत्री से विवाह करना चाहते थे। जोशी जी इस रिश्ते को शिवकार नही कर सकते थे। उन्हें लगने लगा जीस धर्म की रक्षा करने के लिए वो अपने जन्म स्थान को छोड़ के इतनी दूर आये है वो धर्म यहा आने के बाद भी उनकी पुत्री के कारण भ्रष्ट हो जायेगा। उनकी सोच थी की किसी दूसरी जाती में पुत्री का विवहा होने से उनके धर्म की छति होगी। वो विचारने लगे की क्या करे की उनका धर्म की रक्षा हो सके।
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