उत्तराखण्ड के देवता गंगनाथ जी.....
Writer:- |
सुन्दर जी
|
Total page:- |
11
|
Type:- |
प्रेम कहानी
|
Page no.:- |
3
|
Date:- |
4/17/2014
|
|
|
Description:- |
उत्तराखण्ड में अनेको प्राचीन कथाएँ प्रसिद्ध है। उनहीं प्राचीन कथाओं में से गंगनाथ जी की कथा भी है। गंगनाथ जी कथा प्राचीन होने के साथ ही बहुत आधुनिक भी है। गंगनाथ जी पूरे उत्तराखण्ड में भगवान की तरहा पूजे जाते है। और उनके लाखो भक्त भी है। उत्तराखण्ड में गंगनाथ जी की कथा को एक गीत के माध्यम से उनकी पूजा में जगरी के द्वारा गाया जाता है। जो कि उत्तराखण्ड की स्थानिय भाषा में होता है। जिसे समझना इतना सहज नहीं होता। हमारी कथा केवल उसकी दर्शन मात्र है । पर आप को यह बहुत कुछ बता पाने में शक्षम है।...........
|
Page Number - 3
इतना कह के जोशी जी अपने धर को लौट गये जब वो धर लौटे तो उन्होंने भाना और गगनाथ जी की बाते सुनी। और सोच में पढ़ गये। उनकी पुत्री भाना वीर गगंनाथ से प्रेम करने लगि थी और गगंनाथ जी भी उनकी पुत्री से विवाह करना चाहते थे। जोशी जी इस रिश्ते को शिवकार नही कर सकते थे। उन्हें लगने लगा जीस धर्म की रक्षा करने के लिए वो अपने जन्म स्थान को छोड़ के इतनी दूर आये है वो धर्म यहा आने के बाद भी उनकी पुत्री के कारण भ्रष्ट हो जायेगा। उनकी सोच थी की किसी दूसरी जाती में पुत्री का विवहा होने से उनके धर्म की छति होगी। वो विचारने लगे की क्या करे की उनका धर्म की रक्षा हो सके। अगले दिन जोशी जी , गगंनाथ जी को अपने साथ राजा के पास गये। राजा ने गगंनाथ जी का स्वागत किया और धन्यवाद भी दिया। गंगनाथ जी के बहादुरी की किस्से सुनके राजा ने उन्हें अपने राज्य में होने वाली वीरों की प्रतियोगिता के बारे में सुचित किया। राजा ने कहा हे वीर हमारे राज्य में भी कुछ समय अनतराल में वीरता दिखाने की प्रतियोगिता होती रहती है। जिसमें हमारे राज्य से बहुत से वीर भाग लेते है। इस प्रतियोगिता में तीरंदाजी, तलवार बाजी, मल्य युद्ध और शेर से कुश्ति जैसे खेल होते है। जो प्राण धातक भी हो सके है। और जो भी इस प्रतियोगीता को जीत जाता है। हम उसे अपनी सेना का सेना पति धोषित कर देते है। राजा के इतना कहना था कि जोशी जी को लगा उनहें उनकी समस्या का हल मिल गया। उनहें लगा सायद गंगनाथ जी प्रतियोगिता पुरा ना कर पाये और उनके प्राण की हानि हो जाय तो उनहें भाना का विवहा उनसे नहीं करना पढेगा। गंगनाथ जी अभी थोड़ा विचार ही कर रहे थे कि जोशी जी बोल पड़े महाराजा जी गंगनाथ जरूर इस प्रतियोगिता में भाग लेगा। और अपनि वीरता से आपको खुश कर देगा। गंगनाथ जी ने भी जोशी जी के शब्दों का मान रखते हुए प्रतियोगिता के लिए अपनी सहमति जता दी। जोशी जी गंगनाथ जी की प्रतियोगिता में भाग लेने की बात सुनते ही अपनी सारी चिन्ता से मुक्त हो गये और प्रतियोगिता की तैयारी में जुट गये। जब ये बात भाना को पता चली तो भाना ने गंगनाथ जी को इस प्रतियोगिता से अपना नाम वापस लेने के लिए कहने लगि। भाना बिल्कुल भी गंगनाथ जी के प्राणों को शंकट में नहीं देखना चहती थी। भाना ने कहा अगर आप ये युद्ध मेरे लिये लड़ना चाहते हो तो। उसके लिए युद्ध करने कि जरूरत नहीं हम दोनो कही भी चले जायेगें और अपना जीवन साथ में बिता सकेगें। तब गंगनाथ जी ने कहा नहीं भाना मैने तुमसे प्रेम किया है, कोई अपराध नहीं जो हमें भागना पड़े। और जोशी जी भी बहुत अच्छे ह्रदय के व्यक्ति है। उन के प्रति भी अपका पुत्री होने का कर्तव्य है। जिससे आप भाग नहीं सकती। आप चिंता मत करो। हम स्वयम प्रतियोगिता के बाद जोशी जी से आपके और हमारे रिशते की बात करेगें। परंतु भाना गंगनाथ जी की एक भी बात सुन्ने को तैयार नहीं होती है। और उनहें प्रतियोगिता में भाग लेने से शक्त मना कर देती है। भाना की व्याकुल्ता को देखते हुए गंगनाथ जी भाना से कहते है। भाना तुम अभी मेरे बारे में कुछ नहीं जानती हों। पर मुझे लगता है अब हमें आपको अपने बारे में सब बता देना चाहिए। पर आप ये किसी को मत बताना कभी ।
हमारा जनम नेपाल के एक राज्य में एक राजा के परिवार में हुआ। उस राज्य के राजा का मैं रिशते में भतिजा था। पर राजा के कोई पुत्र न होने के कारण उन्हों ने मुझे ही अपने राज्य का उत्तराधिकारी धोषित कर दिया था। पर उस के बाद राजा ने पुनहः दुसरी शादी की। और दूसरी रानी को मेरा उत्तराधिकारी होना पसंद नहीं था । वो चहाती थी कि उसकी होनी वाली संनतान ही राज्य का उत्तराधिकारी होनी चाहिए।
|
Page Number - 3
Please send Your complaint and Suggestion at our Email Id(apnikahaniweb@gmail.com
)
______________________________________________________________________________
______________________________________________________________________________
Serise of this story