उत्तराखण्ड के देवता गंगनाथ जी.....
Writer:- |
सुन्दर जी
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Total page:- |
11
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Type:- |
प्रेम कहानी
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Page no.:- |
4
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Date:- |
4/17/2014
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Description:- |
उत्तराखण्ड में अनेको प्राचीन कथाएँ प्रसिद्ध है। उनहीं प्राचीन कथाओं में से गंगनाथ जी की कथा भी है। गंगनाथ जी कथा प्राचीन होने के साथ ही बहुत आधुनिक भी है। गंगनाथ जी पूरे उत्तराखण्ड में भगवान की तरहा पूजे जाते है। और उनके लाखो भक्त भी है। उत्तराखण्ड में गंगनाथ जी की कथा को एक गीत के माध्यम से उनकी पूजा में जगरी के द्वारा गाया जाता है। जो कि उत्तराखण्ड की स्थानिय भाषा में होता है। जिसे समझना इतना सहज नहीं होता। हमारी कथा केवल उसकी दर्शन मात्र है । पर आप को यह बहुत कुछ बता पाने में शक्षम है।...........
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हमारा जनम नेपाल के एक राज्य में एक राजा के परिवार में हुआ। उस राज्य के राजा का मैं रिशते में भतिजा था। पर राजा के कोई पुत्र न होने के कारण उन्हों ने मुझे ही अपने राज्य का उत्तराधिकारी धोषित कर दिया था। पर उस के बाद राजा ने पुनहः दुसरी शादी की। और दूसरी रानी को मेरा उत्तराधिकारी होना पसंद नहीं था । वो चहाती थी कि उसकी होनी वाली संनतान ही राज्य का उत्तराधिकारी होनी चाहिए।
इसलिए उस रानी ने हमें मारने के लिए बहुत से उपाय किये । एक बार उनहोंने हमें विष पिला के नदि में फेंक दिया। पर हमें होश आने पे वापस अपने राज्य लौट आये। उसके बाद रानी ने हमारे कक्ष में जहरीले साप छोड् दिये जिनहें हमने अपने पैरो से ही कुचल के मार दिया। और जब हम आखेट खेलने जगंल में गये तो वहा भी कुछ रानी के विशवशनिय सैनिको ने हमे अकेला देख के हम पर आक्रमण कर दिया उस समय तो हमारे पास तलवार भी नहीं थी। बस एक खुक्करी से ही हमने सारे सैनिकों का वध कर दिया। और अपने राज्य वापस आ गये। फिर भी रानी ने हार नहीं मानी और जब हम अपने राज्य के सीमाओ के निरक्षण के गये हुए थे तो रानी ने एक वीर योद्धा कोलवा डोटिवाल को हमारे पीछे लगा दिया। और डोटी की सीमा पर जब हम पहुचें तो उस वीर योद्धा ने हम पर आक्रमण कर दिया वह युद्ध पूरा छः दिन और छः रात तक चला और अंत में कोलवा को हमनें परास्थ कर दिया ।
कोलवा ने हमें आग्रह किया कि हम उसे अपना सेवक बना ले। और हमें रानी की सारी बात बता दी की उन्हें हमारा वद्ध करने के लिए रानी ने ही भेजा । पर हमने उसे कहा रानी को कहना आपने उनका काम पूरा कर दिया है। जिससे रानी आपसे खुश भी हो जायेंगी और आप हमारे राज्य की सेवा भी कर सकेगें। हम राज्य छोड़ के जा रहे है। और आप चिंता मत करना हम कभी वापस नहीं आयेगें। और इतना कह के हम जंगलों में चले गये, अपनी राज्य की सीमा से दूर और जंगलों में भटकते भटकते इतनी दूर कब पहुच गये हमें पता ही नहीं चला। और फिर एक दिन आप से इसी जंगल मे मिले।
इसलिए हे भाना आप हमारी चिंता मत करो हम जरूर विजयी होंगें। हमने कभी पीछे हटना नहीं सीखा जब हमारा नाम प्रतियोगिता में शामिल हो चुका है तो हम पिछे नहीं हट सकते। हम कायर नहीं कहलाना चाहते। लड़ते हुए प्रण भी चले गये तो भी हम वीर तो रहेगें ही। और अगर जोशी जी हमारी परीक्षा लेना चाहते है। तो हमें मजूंर है उनकी परीक्षा।
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