उत्तराखण्ड के देवता गंगनाथ जी.....
Writer:- |
सुन्दर जी
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Total page:- |
11
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Type:- |
प्रेम कहानी
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Page no.:- |
6
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Date:- |
4/17/2014
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Description:- |
उत्तराखण्ड में अनेको प्राचीन कथाएँ प्रसिद्ध है। उनहीं प्राचीन कथाओं में से गंगनाथ जी की कथा भी है। गंगनाथ जी कथा प्राचीन होने के साथ ही बहुत आधुनिक भी है। गंगनाथ जी पूरे उत्तराखण्ड में भगवान की तरहा पूजे जाते है। और उनके लाखो भक्त भी है। उत्तराखण्ड में गंगनाथ जी की कथा को एक गीत के माध्यम से उनकी पूजा में जगरी के द्वारा गाया जाता है। जो कि उत्तराखण्ड की स्थानिय भाषा में होता है। जिसे समझना इतना सहज नहीं होता। हमारी कथा केवल उसकी दर्शन मात्र है । पर आप को यह बहुत कुछ बता पाने में शक्षम है।...........
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पर गंगनाथ जी अपनी बारी आने का इंतजार कर रहे थे। जब सेना पति विजय हुए तो राजा ने सेना पति को गंगनाथ जी से युद्ध करने की आज्ञा दी। आज्ञा पा के गंगनाथ जी युद्ध भूमी मे कूद पड़ते है। गंगनाथ जी को यूद्ध भूमी मे आता देख के चारो ओर गंगनाथ जी की जय जय कार गूंजने लगती है। सभी गंगनाथ जी की वीरता से परिचित होना चाहते थे।
सबसे पहले तलवार बाजी का यूद्ध प्रारंभ हुआ। और दोनो वीर एक दूसरे पर तलवारो से प्रहारों की बरिश करने लग गये। युद्ध बहुत देर तक चला परंतु कोई परिणाम निकलता नजर नही आ रहा था। दोनों ही वीर युद्ध मे कौशल थे और दोनो ओर से किसी भी गलती का होना असंभव ही था। परंतु अधिक समय हो जाने पे राजा के कहने जा तलवार बाजी के युद्ध को रोक कर मल्य युद्ध कराने की आज्ञा दी।
दोनो वीरो मे तलवार फेंक के कुशति करने लगे। दोनो ने अपनी सभी दवों का प्रयोग किया। ओर अभी भी दोनों में से कोई हारने को तैयार नही था। पर सायद सेनापती जी थोड़ा थक जरूर गये थे। और अधिक रात्रि हो जाने के कारण राजा ने गंगनाथ जी को अभी तक के युद्ध का विजेता धोषित कर दिया और बाकि प्रतियोगिता अगले दिन के लिए स्थगित कर दी।
अगने दिन सूर्य उदय के साथ ही प्रतियोगिता के आरम्भ का बिगुल भी फूक दिया गया। सेनापती जी और गंगनाथ जी ने सभी प्रतीयोगिता में अपनी वीरता का प्रदर्शन किया। सभी दर्शक दोनो मे से किसी एक के जीत देखने के लिए इंतजार कर रहे थे। उन्हें कोई एक जीतता नजर नहीं आरहा था। और यह देख के भाना की व्याकुलता और बढ़ रही थी।
अब प्रतियोगिता अपने अंतिम चरण में पहुच गयी थी। इस चरण में दोनो वीरो का सामना एक भूखे शेर से होना था। भूखे शेर को यूद्ध स्थल में बड़े से पिंजरे मैं लाया जाता है। शेर के गरजने की गूंज सुन कर चारो ओर संन्नाटा छा जाता है। सभी ये सोच रहे थे की विजय किसकी होगी। चारो तरफ फैले संन्नाटे को भंग करते हुए राजा ने सबसे पहले सेना पति को शेर का मुकाबला करने को कहा। और आज्ञा पाते ही सैनापती ने शेर के सामने कूद लगादी। और शेर के प्रहारो से अपने आप को बचाते हुए शेर पे वार करने लगे।
सेनापती अनुभवी थे उन्हें पता था शेर को कैसे पराजित करना है। और वो अपना पूरा अनुभव प्रयोग कर रहे थे। पर युद्ध के दौरान उन्हें शेर ने घायल कर दिया। परंतु सेनापती ने युद्ध रोकने से मना कर दिया। और शेर का सामना करते रहे। सेनापती जी की छोटी सी गलती होने पर शेर उन्हें मार देता है। सेनापती का ये हाल देख के सभी दर्शक बिलकुल शातं हो जाते है। और एक वीर की मर्त्यु पर शोक करने लगते है। तब राजा उठते है। और कहते है।
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