उत्तराखण्ड के देवता गंगनाथ जी.....
Writer:- |
सुन्दर जी
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Total page:- |
11
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Type:- |
प्रेम कहानी
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Page no.:- |
8
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Date:- |
4/17/2014
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Description:- |
उत्तराखण्ड में अनेको प्राचीन कथाएँ प्रसिद्ध है। उनहीं प्राचीन कथाओं में से गंगनाथ जी की कथा भी है। गंगनाथ जी कथा प्राचीन होने के साथ ही बहुत आधुनिक भी है। गंगनाथ जी पूरे उत्तराखण्ड में भगवान की तरहा पूजे जाते है। और उनके लाखो भक्त भी है। उत्तराखण्ड में गंगनाथ जी की कथा को एक गीत के माध्यम से उनकी पूजा में जगरी के द्वारा गाया जाता है। जो कि उत्तराखण्ड की स्थानिय भाषा में होता है। जिसे समझना इतना सहज नहीं होता। हमारी कथा केवल उसकी दर्शन मात्र है । पर आप को यह बहुत कुछ बता पाने में शक्षम है।...........
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पर अब शेर ने अपनी पूरी शक्ति लगा के गंगनाथ जी के ऊपर छालांग लगा दी सभी ने अपनी उगंलिया दातों तले दबा ली। पर गंगनाथ जी ने शेर के दोनो पंजो को अपनी बालिष्ट भुजा से पकड़ के उन्हें चिरे हुए अपने पैरो से दबा लिया और अपनी ताकत का परिचय देते हुए शेर के मुख के दोनो जबड़ों को अपने दोनो हाथो से पकड़ के शेर के मुह को बीच से चीर दिया। सभी दर्शक गंगनाथ की ताकत को देख के चकित रह गये। और इतने शक्तिशाली पुरुष को देख के आर्श्चय चकित भी हुए। इतना होते ही शेर का शरीर शिथल होने लगा। फिर गंगनाथ जी ने शेर के शिर पर एक शक्तिशाली प्रहार से शेर के जीवन का अंत कर दिया। शेर कि मर्त्यु धोषित होते ही पूरी यूद्ध भूमी गंगनाथ जी के जय कारे से गूंजने लगी। सभी गंगनाथ जी की वीरता की चर्चा करने लगे। और कहने लगे ऐसा वीर सायद कही दूसरा हो।
राजा ने भी गंगनाथ जी को विजेता धोषित कर दिया और साथ ही गंगनाथ जी को सम्मान के तौर पे अपने राज्य का सेना पति का पद ग्रहण करने को कहा। गंगनाथ जी ने राजा का धन्यवाद किया। और कहा हे राजन अगर आप मुझे पहले शेर से यूद्ध करने की आज्ञा देते तो शायद हम एक वीर को नहीं खोते। तब राजा कहते है। वीर का जनम ही वीरगती के लिए होता है और वीर गती तो वीर का सबसे बड़ा पुरस्कार है। हम अपने पूर्व सेना पति की विरता कभी नहीं भुला सकते। धन्य है वो माता जिसने इतने वीर पुत्र को जन्म दिय़ा। और इतना कह के प्रतियोगिता के समाप्ति की धोषण कर दि जाती है। सभी गंगनाथ जी की वीरता की चर्चा करते हुए अपने धर चले जाते है।
राजा ने गंगनाथ जी को सेनापती वाले कक्ष में आराम करने को कहा और चले गये। इधर भाना गंगनाथ जी के विजयी होने से बहुत खुश थी। परतुं जोशी जी उतने ही चितिंत थे उनकी योजना जो विफल हो गयी थी। पर वो हार मानने वाले ना थे उनहोंने अपनी बेटी को समझाने का प्रयास करने का मन बनाया।
घर जा के जोशी जी ने भाना को बुलाया और कहा देख बेटी मैं तेरा पिता हु और तेरा भला ही चाहुगां। और मैं ये चहता हु तु गंगनाथ को भूल जा। ये शब्द सुन कर भाना रोने लगी और अपने पिता जी से विनती करने लगी की वो उनकी बात मान नहीं मान सकती। पर जोशी जी मानने को तैयार न थे। बहुत समझाने पे भी भाना, जोशी जी की बात मानने को तैयार नहीं हुई। तब जोशी जी ने क्रोध में कहा। गंगनाथ ब्रहाम्ण धर्म का नहीं है। और तेरा विवार किसी गैर ब्रहाम्ण से नहीं हो सकता। ये सुन के फिर भाना को भी गुस्सा आग या और रोते हुए बोली बाबा गंगनाथ जी का साथ तो भगवान ने मेरे साथ बहुत पहले ही लिख दिया था। इसे कोई नहीं बदल सकता। मैं गंगनाथ जी के बिना जीवित नहीं रह सकती। और इतना कह के रोते हुए अपने कमरे मे चली गयी। पर जोशी जी हार मानने को तैयान नहीं थे।
भाना भी गंगनाथ जी के बिना कुछ सोचने को तैयार न थी। भाना ने खाना - पीना सब त्याग दिया। जोशी जी अपनी बेटी की यह दशा नहीं देख सकते थे। परंतु वो गंगनाथ जी को भी स्वीकार करने को भी तैयान नहीं थे।
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